इस पोस्ट में आप सीखेंगे Compiler क्या है और इसका उपयोग क्या है? आसान शब्दो में Compiler एक प्रकार का कंप्यूटर प्रोग्राम हैं, जो एक प्रोग्रामिंग भाषा में लिखे गए कोड को दूसरी प्रोग्रामिंग भाषा में ट्रांसलेट करने का कार्य करता हैं।
Compiler हमारे द्वारा लिखे गए कोड को कंप्यूटर के समझने योग्य बनाता है। जिससे कंप्यूटर को उचित output प्रदान करने में सहायता प्राप्त हो सकें। कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग को समझने हेतु Compiler के कार्य करने के तरीकों एवं इसकी विशेषताओं को जानना अत्यंत आवश्यक हैं।
पोस्ट में आप निम्नलिखित टॉपिक के बारे में सीखेंगे: –
चलिए सबसे पहले कम्पाइलर क्या होता है (What is Compiler in Hindi)? इसे विस्तार से जानते है।
कम्पाइलर क्या है – What is Compiler in Hindi?
Compiler उन भाषाओं को ऐसी संरचना मे परिवर्तित करने का कार्य करता हैं जो वास्तव में जटिल हैं, एवं जिन्हे समझ पाना कंप्यूटर की क्षमता से बाहर हैं। आसान शब्दों में इसे हम समझे तो यह उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं (High level programming language) को निम्न स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं (Low level programming language) में ट्रांसलेट करने का कार्य करता हैं।
यह मशीनी उपकरणों की सहायता से इन भाषाओं की संरचना में परिवर्तन करता हैं। यह एक Software program हैं जिसका प्रयोग भाषाओं को ट्रांसलेट करने हेतु किया जाता हैं। यह कंप्यूटर विज्ञान की वह तकनीक है। जो कंप्यूटर की क्षमता एव दक्षता में विस्तारवाद का कार्य करती हैं। यह सामान्यतः human-readable code को machine-readable code मे ट्रांसलेट करता हैं।
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Machine Code वह कोड होते हैं जिनको लिखना बहुत मुश्किल होता हैं। प्रत्येक व्यक्ति द्वारा यह कार्य किया जाना लगभग असंभव हैं। अगर कोई यह लिखे तो भी इसमें समय बहुत लग जाता हैं। कम्पाइलर एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता हैं जो इसे auto create करने में सक्षम होता हैं। जिससे समय की तो बजत होती ही हैं एवं इसमें गलती होने का आशंका भी 0% होती हैं।
Compiler आधुनिक समय की वह खोज हैं जो भाषाओं की जटिलता को सरलता प्रदान कर कंप्यूटर के अनुसार उसकी संरचना एवं इकाई में परिवर्तन लाने का कार्य करता हैं। जिससे कंप्यूटर के उद्देश्यों एवं उसकी आवश्यकतओं व कार्यों में स्पष्टता होती हैं और जिससे उसके निर्माण के उद्देश्यों की पूर्ति होती हैं।
कम्पाइलर का क्या कार्य हैं
सामान्य शब्दों में समझे तो Compiler का कार्य उच्च स्तरीय भाषाओं (source code) को ट्रांसलेट कर मशीनी भाषा मे परिवर्तित करना हैं। यह एक language translator की तरह कार्य करता है। यह भाषा की संरचना में परिवर्तन करने का एक उत्तम मार्ग हैं। जिससे कंप्यूटर के क्षेत्र में विस्तार लाने का कार्य किया जाता है। जिसकी सहायता से कंप्यूटर उत्तम तरीके से कार्य करता हैं।
विस्तार में अगर हम इसे समझे तो जैसा कि आप जानते हैं कि कंप्यूटर हेतु एक ऐसी प्रोग्रामिंग भाषा होनी चाहिए, जिसे कंप्यूटर समझ सकें। कंप्यूटर की संरचना का निर्माण बाइनरी प्रणाली (Binary system) में होता हैं, जिसका निर्माण 0 एवं 1 से होता हैं।
बाइनरी प्रणाली की भाषा को कंप्यूटर की मशीनी भाषा के रूप में समझा जाता हैं। क्योंकि कंप्यूटर सिर्फ इन बाइनरी भाषाओं को समझने में ही सक्षम होता हैं। जिसे हम निम्न स्तरीय भाषा के रूप में देखते हैं।
इन भाषाओं को मशीनी भाषाओं में ट्रांसलेट करने का जो महत्वपूर्ण कार्य किया जाता हैं वह कम्पाइलर प्रोग्राम (Compiler program) द्वारा ही किया जाता हैं। यह कॉड्स की प्रतिलिपि बना उन्हें चयनित या खोजने का कार्य भी करता हैं। जिससे उनके स्थान के बारे में कंप्यूटर को उचित सूचना प्राप्त हो सकें।
यह अपना समस्त कार्य क्रमबद्ध (systematic) रूप से करता है। जिस कारण इसके कार्यो में स्वछता एवं स्पष्टता नजर आती हैं। यह आधुनिक विकास की वह शैली हैं जो कंप्यूटर को एक नई ऊंचाई में ले जाने का कार्य करती हैं।
यह कंप्यूटर की उयोगिता का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं जो प्रायः कंप्यूटर की उपयोगिता को बढ़ाने का कार्य करता हैं। जिससे व्यक्ति अपने समय की बचत कर अपने कार्यो को कम समय रहते पूर्ण कर सकता हैं एवं अपना अन्य समय किसी अन्य कार्य को पूर्ण करने हेतु लगा सकता हैं।
कम्पाइलर के प्रकार – Types of Compiler in Hindi
कंपाइलर के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं: –
- Single-pass compiler
- Two-pass compiler
- Multi-pass compiler
Single-pass Compiler
Single-pass compiler का कार्य प्रोग्राम को पढ़ना हैं। यह कम्पाइलर के सभी phases को संगठित कर उसमें एकरूपता लाने का कार्य करता हैं। single pass compiler आउटपुट को स्टोर करने का भी कार्य करता हैं। जिसके द्वारा वह अपनी प्रक्रिया को पूर्णतः प्रदान करता हैं।
Two-pass Compiler
यह Compiler के सभी phases को दो भागों में विभाजित कर संगठित करने का कार्य करता हैं। यह प्रथम के चार फेसेस और अंत के 2 फेसेस को अलग-अलग भागों में विभाजित करता हैं। यह input और output की प्रक्रिया में अपनी अहम भूमिका अदा करने का कार्य करता हैं। यह syntactical analysis की प्रक्रिया में उसकी सहायता करता हैं।
Multi-pass Compiler
यह single pass compiler के विपरीत कार्य करता हैं। यह ऊपर के दो pass को कई चरणों मे जांच करता हैं और अपनी जांच पूर्ण कर लेने के पश्चात ही यह एक output तैयार करता हैं। हम इसे साधारण शब्दों में समझे तो यह ऊपर के 2 pass में जो कमी रह गयी होती है, यह उसको पूरा करने का कार्य करता हैं।
Compiler के छह Phases क्या हैं?
Compiler, भाषाओं की संरचना एवं उनकी इकाइयों में अनेकों परिवर्तन करता हैं। जिसके द्वारा वह आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप भाषा शैली में उचित परिवर्तन करता हैं। कम्पाइलर अपने कार्य को पूर्ण इन छह चरणों के माध्यम से करता है। जिसके द्वारा वह उच्च स्तरीय भाषा को निम्न स्तरीय भाषा मे परिवर्तित करने का कार्य करता हैं, जो निम्न प्रकार हैं —
(1) Lexical analysis: यह Compiler की प्रॉसेस का प्रथम चरण हैं। जिसके अंतर्गत यह विभिन्न शब्दों को क्रम सँख्या प्रदान करने का कार्य करता हैं। यह उच्च स्तरीय भाषाओं की एक एक इकाई को token के रूप में विभाजित कर देता हैं। यह useless spaces और blank pages को हटाने का भी कार्य करता हैं।
(2) Syntax analysis: यह Compiler का सबसे महत्वपूर्ण चरण हैं। जिसमें यह Lexical analysis के कार्यो की जांच करता हैं। यह उसके कार्यो को व्याकरण की शुद्धता के रूप में जांच करता हैं। यह error pages को select कर उसको दर्शाने का कार्य करता हैं।
(3) Semantic analysis: यह logically error को खोजने का कार्य एवं उस समस्या का समाधान निकालने का कार्य करता हैं। यह command द्वारा input के कार्यो की सटीकता एवं उसकी कार्य प्रणाली में संशोधन का कार्य करता हैं।
(4) Intermediate code generator: कम्पाइलर का यह फेस भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं। यह ऊपर के सभी phases को संगठित रूप प्रदान करने का कार्य करता हैं। यह उनके सभी कार्यो को 3 address कोड में convert करने का कार्य करता हैं। जिससे उनके कार्यों को उनके निर्माण के उद्देश्यों से कार्य मे लाया जा सकें।
(5) Code optimizer: इंटरमीडिएट कोड जेनरेटर जब अपना कार्य पूर्ण कर लेता हैं अर्थात जब वह 3 Address Code को generate कर लेता हैं। तो यह उन codes को optimize करने का कार्य करता हैं। अर्थात यह उनके विस्तारवाद को सूक्ष्म रूप में प्रदर्शित करने का कार्य करता हैं। जिसके द्वारा उसको पड़ने एवं समझने में आसानी हो सकें।
(6) Code generation: तत्पश्चात यह code generate कर उसको पूर्णता प्रदान करता हैं। जिसकी समाप्ति के पश्चात कम्पाइलर का कार्य पूर्ण हो जाता हैं आसान शब्दों में हम कहे तो यह आखरी चरण उच्च स्तरीय भाषा को मशीनी भाषा मे परिवर्तित कर देती हैं। जिसको कंप्यूटर को समझने में सहायता प्राप्त करती हैं और उसे निम्न स्तरीय भाषा के रूप में आसानी से पढ़ा एवं समझा जा सकता हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
Compiler कंप्यूटर के विकास का वह परिणाम हैं जो कंप्यूटर की दक्षता एवं इसके क्षेत्र में विस्तार लाने का कार्य करता हैं। यह प्रोग्रामिंग भाषाओं को कोडिंग का रूप प्रदान करता हैं, जिसे कंप्यूटर और इंसान आसानी से पढ़ एवं समझ सकते हैं। इसकी प्रोग्रामिंग द्वारा व्यक्ति आसानी से input एवं output कमांड करने में सक्षम होता हैं।
सामान्यतः इसका उपयोग भाषाओं की संरचना को बदलने हेतु किया जाता हैं। जिससे कंप्यूटर के विकास की गति में तीव्रता लाई जा सकें। यह अपना कार्य कम समय मे पूर्ण कर लेता हैं। जिससे समय की तो बचत होती ही हैं एवं साथ-साथ इसके प्रयोग में भी सरलता आती हैं। जिस कारण आप और हम आसानी से कंप्यूटर की भाषा को समझ एवं पढ़ पाते हैं।
उम्मीद करते है, इस पोस्ट “Compiler क्या है और इसका उपयोग क्या है?” के माध्यम से आपको इस महत्वपूर्ण कंप्यूटर प्रोग्राम के बारे जानकारी हो गयी होगी। अगर पोस्ट से सम्बन्धित कोई सवाल या सुझाव हो तो कृपया निचे कमेंट में हमें बताये।