इस पोस्ट में आप जानेंगे DNS क्या है और यह कैसे काम करता है?
जब इंटरनेट सेवा की शुरुवात हुई थी तब किसी भी वेबसाइट को विजिट करने के लिए IP address को इस्तेमाल मे लिया जाता था जिसे याद रखना आसान नहीं होता था, क्योंकि आईपी ऐड्रेस थोड़े से अटपटे होते थे परंतु टेक्नोलॉजी में विकास के साथ DNS को तैयार किया गया।
जिसकी वजह से जब हम अपने किसी ब्राउज़र में डोमेन नेम को इंटर करते हैं तो DNS उसे कंप्यूटर के पढ़ने लायक IP address में ट्रांसलेट कर देता है। आइए जानते हैं DNS क्या होता है?
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डोमेन नेम सिस्टम क्या है
डीएनएस का इतिहास
डीएनएस कैसे काम करता है
डोमेन नेम और आईपी एड्रेस में अंतर
डीएनएस के फायदे क्या है
डीएनएस क्या है? (What is DNS in Hindi)
DNS का पूरा नाम Domain Name System होता है। यह domain name को IP address में रूपांतरित करता है। जब हम वेब ब्राउजर में किसी भी domain name को कीबोर्ड की सहायता से टाइप करते हैं तो DNS उसे आईपी एड्रेस से चेंज कर देता है।
इंटरनेट में computers हमेशा एक दूसरे की पहचान unique numbers से करते हैं जिन्हें IP address कहा जाता है, वे मानव भाषा नहीं समझते हैं। यदि कंप्यूटर मानव भाषाओं को नहीं समझते हैं, तो जब हम वेब ब्राउज़र के URL bar में किसी वेबसाइट का address टाइप करते हैं तो वे उसे कैसे लोड करते हैं।
इसके लिए DNS का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जब हम किसी ब्राउज़र के URL bar में www.example.com टाइप करते हैं तो डोमेन नेम सिस्टम उसे 198.15.45.18 या फिर दूसरे किसी valid IP address में कन्वर्ट कर देता है। ताकि कंप्यूटर समझ पाए कि यूजर ने किस वेबसाइट के लिए अनुरोध किया है।
ब्राउज़र में संख्या की जगह पर शब्दों को टाइप करना बहुत ही सरल होता है, जिसकी वजह से आसानी से किसी भी वेबसाइट को लोग सर्च कर लेते हैं साथ ही जान पहचान के नामों का इस्तेमाल करके ईमेल भी सेंड कर सकते हैं।
जब ब्राउज़र में हमारे द्वारा किसी वेबसाइट को विजिट किया जाता है तो वह डोमेन नेम के अनुरूप आईपी के साथ मेल खाने के लिए इंटरनेट पर एक अनुरोध सेंड करता है। एक बार अनुरोध लोकेट हो जाने के बाद यह फिर से वेबसाइट के कंटेंट को पाने के लिए IP address का ही इस्तेमाल करता है।
डोमेन नेम सिस्टम क्या है अगर इसे संक्षिप्त में समझे तो DNS इंटरनेट की एक phonebook के रूप में कार्य करता है जहां वेबसाइटों के domain name उनके IP address पर mapped किए जाते हैं।
DNS server कुल 4 प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है:
DNS resolver: इसे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के द्वारा हासिल किया जाता है।
Root name server: इसे टोटल 12 डिफरेंट टाइप की ऑर्गेनाइजेशन कंट्रोल करती है और लगभग पूरे वर्ल्ड में इसका यूज होता है। मुख्य तौर पर इसका इस्तेमाल इंफॉर्मेशन पेज को क्रिएट करने के लिए होता है।
TLD name server: जितनी भी वेबसाइट मौजूद है और जितने भी डोमेन नेम मौजूद है, उन सभी वेबसाइट और डोमेन नेम की जानकारी इसी सर्वर में संग्रहित होती है।
Authoritative name server: वेबसाइट के जो आईपी एड्रेस होते हैं, वह इसी में स्टोर हो कर के रखे जाते हैं।
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डोमेन नेम सिस्टम का इतिहास
यह बात आज से लगभग 40 साल पहले की है। उस टाइम इंटरनेट का साइज काफी छोटा था और उस टाइम वेबसाइट की भी संख्या काफी कम थी, साथ ही डिवाइस भी काफी कम संख्या में मौजूद थे।
इसलिए आसानी से आईपी एड्रेस को याद किया जा सकता था परंतु जैसे-जैसे डिवाइस की संख्या बढ़ती गई और वेबसाइट की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे ही आईपी एड्रेस में भी बढ़ोतरी होती गई और इस प्रकार से आईपी एड्रेस को याद रखना काफी कठिन काम होने लगा।
इस प्रॉब्लम से छुटकारा पाने के लिए साल 1980 के आसपास में Paul Mockapetris नाम के कंप्यूटर साइंटिस्ट ने DNS को खोजा ताकि वेबसाइट को कुछ ऐसा नाम दिया जा सके जिसे आसानी से याद किया जा सके।
DNS कैसे काम करता है
DNS एक सर्विस की तरह अपना कार्य करता है जो आसानी से आईपी एड्रेस को डोमेन नेम में ट्रांसलेट कर देता है, वही डोमेन नेम को आईपी ऐड्रेस में ट्रांसलेट कर देता है।
जब हम किसी भी वेब ब्राउज़र में डोमेन नेम को टाइप करते हैं तो ऑटोमेटिक डोमेन नेम सिस्टम उसे उसके IP address में ट्रांसलेट कर देता है और उसके पश्चात server तक आईपी ऐड्रेस के जरिए रिक्वेस्ट सेंड कर देता है और उसके पश्चात आईपी एड्रेस के जरिए सर्वर का आंसर प्राप्त होता है।
डोमेन नेम सिस्टम फिर से आईपी ऐड्रेस को डोमेन नेम में ट्रांसलेट कर देता है और यह ब्राउज़र तक रिस्पांस आने के पहले ही हो जाता है और इसी की वजह से यूजर को इस बात की जानकारी ही नहीं हो पाती है कि जो कम्युनिकेशन हुआ है वह IP address के जरिए हुआ है।
परंतु वास्तविक तौर पर देखा जाए तो आईपी एड्रेस ही वेबसाइट के बीच में कम्युनिकेशन होने की वजह है। जब हमें किसी भी वेबसाइट का आईपी पता होता है तो हम तुरंत ही अपने डिवाइस में वेब ब्राउज़र ओपन करके उसको डालकर के सीधा उस वेबसाइट तक आसानी से पहुंच जाते हैं।
ऐसी अवस्था में किसी भी प्रकार का किरदार DNS का नहीं होता है क्योंकि हमें पहले से ही यह पता होता है कि किसी विशेष वेबसाइट का आईपी ऐड्रेस क्या है। कुछ वेबसाइट के आईपी को याद करना बहुत ही आसान है परंतु बहुत सारी वेबसाइट के नहीं। जबकि कई वेबसाइट के डोमेन नेम को आसानी के साथ याद किया जा सकता है।
DNS Server Not Responding से क्या मतलब है?
जब आप अपने ब्राउज़र में किसी डोमेन नेम का यूआरएल इंटर करते हैं तो कई बार आपको अपने डिवाइस की स्क्रीन पर “DNS server isn’t responding” दिखाई देता है जिसका मतलब यह होता है कि DNS server के साथ कम्युनिकेट करने का प्रयास किया गया परंतु सर्वर रिजल्ट देने में फेल हो गया। यह कुछ वजह से होता है जो नीचे बताए अनुसार है।
अगर आपका इंटरनेट कनेक्शन धीमा है या फिर स्थाई नहीं है तो आपको ऊपर बताई गई समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए आपको अपने डोमेन नेम सिस्टम में सेटिंग या फिर ब्राउज़र को अपडेट करना जरूरी है।
अगर DNS server के साथ कोई समस्या है जैसे कि डाटा सेंटर में पॉवर लॉस तो इससे भी ऊपर बताई भी समस्या पैदा होती है।
Domain Name और IP Address में मुख्य अंतर
डोमेन नेम और आईपी ऐड्रेस इन दोनों की ही डोमेन नेम सिस्टम में काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन दोनों का ही काम डोमेन नेम सिस्टम में एक जैसा ही होता है परंतु जो आईपी एड्रेस होते हैं वह नंबर पर डिपेंड (e.g. 198.15.45.18) होते हैं और इनको याद रखना सामान्य लोगों के बस की बात नहीं होती है परंतु जो डोमेन नेम (e.g. google.com) होते हैं वह नाम के ऊपर आधारित होते हैं।
इसलिए डोमेन नेम को आसानी से याद किया जा सकता है। ये छोटे भी होते हैं और बड़े भी होते हैं परंतु अधिकतर लोग छोटे डोमेन नेम को ही लेना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें याद करना काफी आसान होता है साथ ही उसे जल्दी से वेब ब्राउज़र में टाइप किया जा सकता है।
DNS के फायदे क्या है
डोमेन नेम सिस्टम के प्रमुख फायदों की जानकारी नीचे दी गई है:
- पूरी दुनिया में डोमेन नेम सिस्टम एकमात्र ऐसी प्रणाली है, जिसकी सहायता से हम सरलता के साथ इंटरनेट सर्फिंग कर सकते हैं।
- डोमेन नेम सिस्टम की वजह से हमें वर्तमान के समय में किसी भी वेबसाइट के आईपी एड्रेस को याद करके रखने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
- हम आसानी के साथ डोमेन नेम से ही किसी भी वेबसाइट को सर्च कर सकते हैं और उस वेबसाइट को एक्सेस कर सकते हैं।
- यह हाई लेवल पर सिक्योरिटी प्रदान करने में सहायक साबित होता है।
- इसकी वजह से टाइपिंग करने के दरमियान जो गलतियां हो जाती है, वह ऑटोमेटिक सही हो जाती है।
- ब्राउज़र में किसी वेबसाइट को एक्सेस करने के लिए हमें DNS सर्वर की आवश्यकता पड़ती है।
- जो भी प्रॉब्लम डोमेन नेम सिस्टम में होती है उसे हटाने के लिए इसका root name server हमारी सहायता करता है।
- जो root server होता है वह top level domain पर वर्क करता है और वह जितने भी डोमन होते हैं उनकी जानकारी अपने पास स्टोर करके रखता है।
- resolvers उसके बाद वेबसाइट को एक्सेस करने में या रन करने में सहायता करता है।
- इसके पश्चात TLD server डोमेन के आईपी ऐड्रेस को बताता है।
- सबसे आखरी में recursive resolver की सहायता से यूजर जो कमांड देता है वह उसे चलाने के लिए सिग्नल देता है।
संक्षेप में (Conclusion)
अंत में उप्पर जो बताया अगर उसे संक्षेप में समझे तो चूँकि कंप्यूटर हम इंसानों की तरह नामों को नहीं समझते बल्कि वे सिर्फ नंबरो से चलते है इसलिए DNS या Domain Name System यहां पर एक प्रकार के ट्रांसलेटर है रूप में काम करता है जो domain names को IP addresses में बदलता है।
तो उम्मीद है, इस लेख को पढ़कर आपको पता चल गया होगा DNS क्या है और यह कैसे काम करता है? अगर लेख से सम्बंधित आपके पास कोई सुझाव या सवाल हो तो कृपया हमें नीचे कमेंट में जरूर बताये।
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डीएनएस तथा डोमेन नेम के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है थैंक्स